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गीताप्रेस

मुक्त ज्ञानकोश विवकपीविया से


(गीता प्रेस से अनुप्रेवित)

गीताप्रेस, गोरखपुर का मुख्य द्वार

गीताप्रेस या गीता मुद्रणालय, विश्व की सिाा विक विन्दू िावमाक पुस्तकें प्रकावशत करने िाली
संस्था िै । यि पूिी उत्तर प्रदे श के गोरखपुर शिर के शेखपुर इलाके की एक इमारत में िावमाक
पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रिी िै । इसमें लगभग २०० कमाचारी काम करते
िैं । यि एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था िै । दे श-दु वनया में विं दी, संस्कृत और अन्य भारतीय
भािाओं में प्रकावशत िावमाक पुस्तकों, ग्रंथों और पत्र-पवत्रकाओं की विक्री कर रिी गीताप्रेस को
भारत में घर-घर में रामचररतमानस और भगिद्गीता को पहं चाने का श्रेय जाता िै । गीता प्रेस की
पुस्तकों की विक्री 18 वनजी थोक दु कानों के अलािा िजारों पुस्तक विक्रेताओं और ४२ प्रमुख
रे लिे स्टे शनों पर िने गीता प्रेस के िुक स्टॉलों के जररए की जाती िै । गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा
कल्याण (विन्दी मावसक) और कल्याण-कल्पतरु (इं त्मिश मावसक) का प्रकाशन भी िोता िै ।
गीताप्रेस का कानपुर रे लिे स्टे शन पर स्टॉल

अनुक्रम
 1 स्थापना एिं पररचय
 2 गीता प्रेस की कुछ विशेिताएं
 3 सम्बत्मित संस्थाएं
 4 इन्हें भी दे खें
 5 िािरी कव़ियााँ

स्थापना एवं पररचय


गीताप्रेस की स्थापना सन् 1923 ई० में हई थी। इसके संस्थापक मिान गीता-ममाज्ञ श्री जयदयाल
गोयन्दका थे। इस सुदीघा अन्तरालमें यि संस्था सद्भािों एिं सत् -सावित्य का उत्तरोत्तर प्रचार-
प्रसार करते हए भगित्कृपा से वनरन्तर प्रगवत के पथ पर अग्रसर िै । आज न केिल समूचे
भारत में अवपतु विदे शों में भी यि अपना स्थान िनाये हए िै । गीताप्रेस ने वनिःस्वाथा सेिा-भाि,
कताव्य-िोि, दावयत्व-वनिाा ि, प्रभुवनष्ठा, प्रावणमात्र के कल्याण की भािना और आिोद्धार की जो
सीख दी िै , िि सभी के वलये अनुकरणीय आदशा िना हआ िै ।

करीि 90 साल पिले यानी 1923 में स्थावपत गीता प्रेस द्वारा अि तक 45.45 करो़ि से भी
अविक प्रवतयों का प्रकाशन वकया जा चुका िै । इनमें 8.10 करो़ि भगिद्गीता और 7.5 करो़ि
रामचररत मानस की प्रवतयां िैं । गीता प्रेस में प्रकावशत मविला और िालोपयोगी सावित्य की
10.30 करो़ि प्रवतयों पुस्तकों की विक्री िो चुकी िै ।
गीता प्रेस ने 2008-09 में 32 करो़ि रुपये मूल्य की वकतािों की विक्री की। यि आं क़िा इससे
वपछले साल की तुलना में 2.5 करो़ि रुपये ज्यादा िै । िीते वित्त ििा में गीता प्रेस ने पुस्तकों
की छपाई के वलए 4,500 टन कागज का इस्तेमाल वकया।

गीता प्रेस की लोकवप्रय पवत्रका कल्याण की िर माि 2.30 लाख प्रवतयां विकती िैं । विक्री के
पिले िताए गए आं क़िों में कल्याण की विक्री शावमल निीं िै । गीता प्रे स की पुस्तकों की मां ग
इतनी ज्यादा िै वक यि प्रकाशन िाउस मां ग पूरी निीं कर पा रिा िै । औद्योवगक रूप से
वपछिे ¸ पूिी उत्तर प्रदे श के इस प्रकाशन गृि से िर साल 1.75 करो़ि से ज्यादा पुस्तकें दे श-
विदे श में विकती िैं ।

गीता पे्रस के प्रोिक्शन मैनेजर लालमवण वतिारी किते िैं , िम िर रोज 50,000 से ज्यादा
वकतािें िेचते िैं । दु वनया में वकसी भी पत्मिवशं ग िाउस की इतनी पुस्तकें निीं विकती िैं ।
िावमाक वकतािों में आज की तारीख में सिसे ज्यादा मां ग रामचररत मानस की िै । अग्रिाल ने
किा वक िमारे कुल कारोिार में 35 फीसदी योगदान रामचररत मानस का िै । इसके िाद 20 से
25 प्रवतशत का योगदान भगिद्गीता की विक्री का िै ।

गीता प्रेस की पु स्तकों की लोकवप्रयता की िजि यि िै वक िमारी पुस्तकें काफी सस्ती िैं । साथ
िी इनकी वप्रवटं ग काफी साफसुथरी िोती िै और फोंट का आकार भी ि़िा िोता िै । गीताप्रेस
का उददे श्य मुनाफा कमाना निीं िै । यि सदप्रचार के वलए पुस्तकें छापते िैं । गीता प्रेस की
पुस्तकों में िनुमान चालीसा, दु गाा चालीसा और वशि चालीसा की कीमत एक रुपये से शुरू िोती
िै ।

गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 िै । इनमें से 780 प्रकाशन विं दी और संस्कृत में
िैं । शेि प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, िां िा, उव़िया, तवमल, कन्ऩि, अंग्रेजी और अन्य भारतीय
भािाओं में िैं । रामचररत मानस का प्रकाशन नेपाली भािा में भी वकया जाता िै ।

तमाम प्रकाशनों के िािजूद गीता प्रे स की मावसक पवत्रका कल्याण की लोकवप्रयता कुछ अलग
िी िै । माना जाता िै वक रामायण के अखंि पाठ की शुरुआत कल्याण के विशेिां क में इसके
िारे में छपने के िाद िी हई थी। कल्याण की लोकवप्रयता का अं दाजा इसी से लगाया जा
सकता िै वक शुरुआती अंक में इसकी 1,600 प्रवतयां छापी गई थीं, जो आज िढ़कर 2.30 लाख
पर पहं च गई िैं । गरु़ि, कूमा, िामन और विष्णु आवद पुराणों का पिली िार विं दी अनुिाद
कल्याण में िी प्रकावशत हआ था। योगी आवदत्यनाथ गीतापुर प्रेस के संरक्षक[1] िैं |

गीता प्रेस की कुछ ववशेषताएं


गीताप्रेस की कुछ विशेिताएाँ वनम्नवलत्मखत िैं -[2]

 गीता प्रेस सरकार या वकसी भी अन्य व्यत्मक्त या संस्था से वकसी तरि का कोई
अनुदान निीं लेता िै ।
 गीता प्रेस में प्रवतवदन 50 िजार से अविक पुस्तकें छपती िैं ।
 92 ििा के इवतिास में माचा, 2014 तक गीता प्रेस से 58 करो़ि, 25 लाख पुस्तकें प्रकावशत
िो चुकी िैं । इनमें गीता 11 करो़ि, 42 लाख। रामायण 9 करो़ि, 22 लाख। पुराण, उपवनिद्
आवद 2 करो़ि, 27 लाख। िालकों और मविलाओं से सम्बंवित पु स्तकें 10 करो़ि, 55 लाख।
भक्त चररत्र और भजन सम्बंिी 12 करो़ि, 44 लाख और अन्य 12 करो़ि, 35 लाख।
 मूल गीता तथा उसकी टीकाओं की 100 से अविक पुस्तकों की 11 करो़ि, 50 लाख से भी
अविक प्रवतयां प्रकावशत हई िैं । इनमें से कई पुस्तकों के 80-80 संस्करण छपेेे िैं ।
 यिां कुल 15 भािाओं (विन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तवमल, तेलुगू, कन्ऩि, मलयालम, गुजराती,
मराठी, िंगला, उविया, असवमया, गुरुमुखी, नेपाली और उदू ा ) में पुस्तकें प्रकावशत िोेे ती िैं ।
 यिां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रवतशत कम दाम पर िेची जाती िैं ।
 पूरे दे श में 42 रे लिे स्टे शनों पर स्टॉल और 20 शाखाएं िैं ।
 गीता प्रेस अपनी पुस्तकों में वकसी भी जीवित व्यत्मक्त का वचत्र निीं छापती िै और न
िी कोई विज्ञापन प्रकावशत िोता िै ।
 गीता प्रेस से प्रकावशत मावसक पवत्रका 'कल्याण' की इस समय 2 लाख, 15 िजार प्रवतयां
छपती िैं । ििा का पिला अंक वकसी वििय का विशेिां क िोता िै ।
 गीता प्रेस का संचालन कोलकाता त्मस्थत 'गोविन्द भिन' करता िै ।

सम्बन्धित संस्थाएं
गीताप्रेस, गोविन्द भिन कायाा लय, कोलकाता का भाग िै ।

अन्य सम्बत्मित संस्थान िैं :

 गीता भिन, हृविकेश


 ऋविकुल्-ब्रह्मचया आश्रम् (िैवदक विद्यालय), चुरू, राजस्थान
 आयुिेद संस्थान, हृविकेश
 गीताप्रेस सेिा दल (प्राकृवतक आपदाओं के समय सिायता करने के वलये )
 िस्त-वनवमात िस्त्र विभाग

Panchajanya report

वपछले कुछ वदनों से गोरखपुर की गीता प्रेस के सम्बं ि में मीविया में कई तरि की िातें आ रिी िैं । कोई कि
रिा िै वक गीता प्रेस िन्द िो गई िै , कोई कि रिा िै िन्द िोने के कगार पर िै ..। इन खिरों से गीता प्रेस
के करो़िों पाठक, शुभवचन्तक और अध्याि जगत वचत्मन्तत, परे शान िै । लगभग 45 ििा से गीता प्रेस की पुस्तकों के
पाठक और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से से िावनिृ त्त अविकारी विजय कुमार कोिली किते िैं ,'गीता प्रेस
की पुस्तकों को पढ़कर मेरा जीिन िदल गया। यवद गीता प्रेस की पुस्तकें निी ं पढ़ता तो शायद मैं कुछ और िी
िोता। वलखने-पढ़ने का काम तो कतई निी ं करता, लेवकन गीता प्रेस के िारे में जो खिरें आ रिी िैं उनसे मैं
िहत िी वचत्मन्तत हं । गीता प्रेस को वकसी भी सू रत में िन्द निी ं िोने दे ना चाविए। इससे सनातन िमा का प्रचार-
प्रसार रुक जाएगा। गीता प्रेस कोई सािारण प्रेस निी ं िै । इसकी तु लना विश्व की वकसी भी प्रेस से निी ं की जा
सकती िै ।' शायद यिी कारण िै वक गीता प्रेस में घटी छोटी-सी घटना को भी दे शी-विदे शी मीविया अपनी
सु त्मखायां िना लेता िै । दु वनया में रोजाना अनेक छापाखाने िन्द िो रिे िैं , और प्रारं भ भी िो रिे िैं , लेवकन मीविया
में उनकी खिर निी ं िनती िै । पर अंग्रेजी और से कुलर मीविया गीता प्रेस में मजदू रों द्वारा की गई ि़िताल को
भी इस तरि परोस रिा िै मानो गीता प्रेस िन्द िो गई।
आत्मखर सचाई क्या िै , यि जानने के वलए पाञ्चजन्य ने गीता प्रेस से सम्पका वकया। गीता प्रेस के न्यासी ईश्वर प्रसाद
पटिारी ने किा, 'मीविया में भ्रामक खिरें चलाई जा रिी िैं । गीता प्रेस िन्द निी ं हई िै , न िी ऐसी कोई
पररत्मस्थवत िै और न िी भविष्य में इसे िन्द िोने वदया जाएगा। प्रेस को चलाने के वलए िन की कमी निी ं िै
और यि प्रेस समाज के कल्याण के वलए काया करती रिे गी। िे तन सम्बं िी कुछ मां गों को लेकर कमाचाररयों ने
ि़िताल की िै , इसका मतलि यि निी ं िै वक गीता प्रेस िन्द िो गई।' िता मान वििाद की पृष्ठभू वम के िारे में
उन्होंने िताया, 'अनुशासनिीनता के कारण 16 वदसम्बर, 2014 को प्रेस के तीन कमाचाररयों को िखाा स्त वकया गया
था। प्रशासन के िस्तक्षे प के िाद 17 वदसम्बर से काया सु चारू रूप से चल रिा था। इसके िाद जून, 2015 में
एक िार वफर िे तन में िढ़ोत्तरी को लेकर वििाद शुरू हआ। तभी से प्रेस प्रिं िन और कमाचाररयों के िीच कई
दौर की िाताा हई। 4 अगस्त को हई िाताा में प्रिं िन ने किा वक उनके िे तन जरूर िढ़ाए जाएं गे , लेवकन इससे
पिले के सारे वििाद कमाचाररयों को वनपटाने िां ेेगे और कोई भी कमाचारी अपने वकसी मुद्दे को न्यायालय तक
निं ेीें ले जाएगा, लेवकन कमा चारी इस शता को मानने के वलए तै यार निी ं थे। इसी िीच 7 अगस्त को कमाचाररयों
की एक टोली ने सिायक प्रिं िक के साथ मार-पीट की। इसके िाद 12 वनयवमत कमाचाररयों और 5 अस्थाई
कमाचाररयों को वनलंवित कर वदया गया। उन कमाचाररयों की पुनिा िाली को लेकर 8 अगस्त से शेि कमाचारी
ि़िताल पर िैं । उम्मीद िै वक जल्दी िी यि सं कट समाप्त िो जाएगा और प्रेस पिले की तरि काम करने
लगे गी।'
गीता प्रेस के एक कमाचारी संजीि उपाध्याय ने पाञ्चजन्य से किा,'ि़िताल खि करिाने के वलए प्रिं िन िर तरि
की नीवत अपना रिा िै । िम लोगों की मां ग िै वक मिं गाई के इस यु ग में िमारी मजदू री िढ़ाई जाए। यिां 20-
25 ििा से काम करने िाले मजदू रों को भी िहत कम िे तन वमलता िै । वकन िालातों में िम लोग घर चला रिे
िैं , इसका अंदाजा िािर के लोगों को निी ं िो सकता िै ।' एक अन्य कमाचारी िलराम वतिारी (पररिवता त नाम) ने
किा, 'विन्दू िमा के प्रचार-प्रसार में गीता प्रेस का कोई मुकािला निी ं िै । यिां काम कर रिे कमाचाररयों को इस
िात का भी गिा िै वक िे अपने िमा के प्रचार में अिम भू वमका वनभा रिे िैं , लेवकन भू खे पेट यि कि तक
चलेगा? यिां काम करने िाले कमाचाररयों को इतनी तनख्वाि निी ं वमलती िै वक िे अपने पररिार का ठीक से
गु जर-िसर कर सकें। वफर भी गीता प्रेस का कोई भी कमाचारी निी ं चािता िै वक जिां से उसका और उसके
पररिार का पालन-पोिण िो रिा िै िि िन्द िो जाए, उन्हें पररिार चलाने लायक िे तन तो वमलना िी चाविए।'
वनलंवित कमाचारी मुवनिर वमश्रा 1992 से गीता प्रेस में कम्प्यूटर ऑपरे टर िैं । उन्होंने पाञ्चजन्य से किा, 'जि मेरी
वनयु त्मक्त हई थी उस समय िे तन के रूप में 1230 रु. वमलते थे। आज 23 ििा िाद भी केिल 9000 रु. वमलते
िैं । इसी में से पी.एफ. आवद की कटौती भी िोती िै । घर में िृ द्ध माता-वपता, पत्नी और दो िच्चे िैं । दोनों िच्चे
कॉलेज में पढ़ाई कर रिे िैं । ि़िे िे टे की पढ़ाई का खचा उसके मामा उठाते िैं । पत्नी का िाल िी में ब्रे न ट्यूमर
का ऑपरे शन हआ िै और वपताजी भी अस्वस्थ रिते िैं । इतनी मिं गाई में घर कैसे चलेगा? इसका जिाि कोई दे
सकता िै ? िम लोगों की मां ग कोई गलत निी ं िै ।'
35 ििा से गीता प्रेस की पुस्तकों का अध्ययन करने िाली वदल्ली वनिासी कैलाशी दे िी मजदू रों की िालत से
आित िैं । उन्होंने किा ,'श्रवमकों को उवचत मजदू री तो जरूर वमलनी िी चाविए। गीता प्रेस का उद्दे श्य िै समाज
का कल्याण। इसवलए उसे अपने श्रवमकों के कल्याण के िारे में तो सोचना िी चाविए। इसके वलए गीता प्रेस
अपनी पुस्तकों का दाम भी िढ़ाए तो चलेगा। गीता प्रेस का कोई भी पाठक ऐसा निी ं िोगा जो दाम िढ़ाने से
उसकी पुस्तकें निी ं खरीदे गा। आत्मखर िे श्रवमक भी तो अपने िी िैं ।'
ऐसे करो़िों पाठक िैं , जो गीता प्रेस के साथ िटकर ख़िे िैं । उनका किना िै वक यवद गीता प्रेस अपनी पुस्तकों
की कीमतें िढ़ा भी दे तो भी अन्य प्रकाशनों की अपेक्षा िि सस्ती िी िोंगी। इसवलए पाठकों पर कोई फका निी ं
प़िे गा।
कुछ विशेिताएं
- गीता प्रेस सरकार या वकसी भी अन्य व्यत्मक्त या सं स्था से वकसी तरि का कोई अनुदान निी ं लेता िै ।
- गीता प्रेस में प्रवतवदन 50 िजार से अविक पुस्तकें छपती िैं ।
- 92 ििा के इवतिास में माचा, 2014 तक गीता प्रेस से 58 करो़ि, 25 लाख पुस्तकें प्रकावशत िो चुकी िैं । इनमें
गीता 11 करो़ि, 42 लाख। रामायण 9 करो़ि, 22 लाख। पुराण, उपवनिद् आवद 2 करो़ि, 27 लाख। िालकों और
मविलाओं से सम्बं वित पुस्तकें 10 करो़ि, 55 लाख। भक्त चररत्र और भजन सम्बं िी 12 करो़ि, 44 लाख और अन्य
12 करो़ि, 35 लाख।
- मूल गीता तथा उसकी टीकाओं की 100 से अविक पुस्तकों की 11 करो़ि, 50 लाख से भी अविक प्रवतयां
प्रकावशत हई िैं । इनमें से कई पुस्तकों के 80-80 सं स्करण छपेेे िैं ।
- यिां कुल 15 भािाओं (विन्दी, सं स्कृत, अंग्रेजी, तवमल, ते लुगू, कन्ऩि, मलयालम, गु जराती, मराठी, िं गला, उविया,
असवमया, गु रुमुखी, नेपाली और उदू ा ) में पुस्तकें प्रकावशत िोेे ती िैं ।
* यिां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रवतशत कम दाम पर िे ची जाती िैं ।
* पूरे दे श में 42 रे लिे स्टे शनों पर स्टॉल और 20 शाखाएं िैं ।
* गीता प्रेस अपनी पुस्तकों में वकसी भी जीवित व्यत्मक्त का वचत्र निी ं छापती िै और न िी कोई विज्ञापन
प्रकावशत िोता िै ।
* गीता प्रेस से प्रकावशत मावसक पवत्रका 'कल्याण' की इस समय 2 लाख, 15 िजार प्रवतयां छपती िैं । ििा का
पिला अंक वकसी वििय का विशेिां क िोता िै ।
* गीता प्रेस का सं चालन कोलकाता त्मस्थत 'गोविन्द भिन' करता िै । मीविया में भ्रामक खिरें चलाई जा रिी िैं ।
गीता प्रेस िन्द निी ं हई िै , न िी ऐसी कोई पररत्मस्थवत िै और न िी भविष्य में इसे िन्द िोने वदया जाएगा।
-ईश्वर प्रसाद पटिारी, न्यासी, गीता प्रेस

गीता प्रेस का कोई भी कमाचारी निी ं चािता िै वक जिां से उसका और उसके पररिार का पालन-पोिण िो रिा
िै िि िन्द िो जाए, उन्हें पररिार चलाने लायक िे तन तो वमलना िी चाविए।
-िलराम वतिारी (पररिवता त नाम), कमाचारी, गीता प्रेस

गीता प्रेस की पुस्तकों को पढ़कर मेरा जीिन िदल गया। यवद गीता प्रेस की पुस्तकें निी ं पढ़ता तो शायद मैं कुछ
और िी िोता। गीता प्रेस कोई सािारण प्रेस निी ं िै । इसकी तु लना विश्व की वकसी भी प्रेस से निी ं की जा
सकती िै ।
-विजय कोिली, पाठक, गीता प्रेस

गीता प्रेस का उद्दे श्य िै समाज का कल्याण। इसवलए उसे अपने श्रवमकों के कल्याण के िारे में तो सोचना िी
चाविए। इसके वलए गीता प्रेस अपनी पुस्तकों का दाम भी िढ़ाए तो चलेगा। गीता प्रेस का कोई भी पाठक ऐसा
निी ं िोगा जो दाम िढ़ाने से उसकी पुस्तकें निी ं खरीदे गा। आत्मखर िे श्रवमक भी तो अपने िी िैं ।
-कैलाशी दे िी, पाठक, गीता प्रेस

गीता प्रेस ने िमारी मिान सां स्कृवतक विरासत, िमारे ऋवि-मुवनयों के वचन्तन और िमारे ज्ञावनयों की सां स्कृवतक
रचनाओं को अक्षरदे ि दे ने का काया वकया िै ।
-नरे न्द्र मोदी, प्रिानमंत्री, गोरखपुर की एक रै ली में

गीता प्रेस के लोग आध्यात्मिकता की िु वनयादी से िा कर रिे िैं और भारतीय िरोिर की कुछ इस प्रकार रक्षा कर
रिे िैं , वजसका विश्व के इवतिास में उदािरण वमलना मुत्मिल िै ।
- न्यायमूवता दोरै स्वामी राजू
पूिा न्यायािीश, सिोच्च न्यायालय

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