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अभी ख़ामोश ह शोल का अंदाज़ा नह होता


मुज़ फ़र र मी

अभी ख़ामोश ह शोल का अंदाज़ा नह होता

मरी ब ी म हं गाम का अंदाज़ा नह होता

जधर महसूस हो ख़ुशबू उसी जा नब बढ़े जाओ

अँधेरी रात म र का अंदाज़ा नह होता

जो स दय क कसक ले कर गुज़र जाते ह दु नया से

मोअ रख़ को भी उन ल का अंदाज़ा नह होता

ये रहबर ह क रहज़न ह मसीहा ह क क़ा तल ह

हम अपने नुमाइं द का अंदाज़ा नह होता

नज़र हो लाख गहरी और बसीरत-आ ा फर भी

नक़ाब म कभी चेहर का अंदाज़ा नह होता

ज़म पर आओ फर देखो हमारी अह मयत ा है

बुलंदी से कभी ज़र का अंदाज़ा नह होता

वफ़ाओं के तसलसुल से भी अ र टू ट जाते ह

मोह त के हस र का अंदाज़ा नह होता

उतर जाते ह ह ओ दल म कतनी वुसअत ले कर

ग़ज़ल के दल बा लहज का अंदाज़ा नह होता

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R E C I TAT I O N S
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सलीक़े से सजाना आईन को वना ऐ 'र मी'

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नोमान शौक़
ग़लत ख़ हो तो फर चेहर का अंदाज़ा नह होता

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R E C I TAT I O N S
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