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िाजपेयी
किि आज सुना िह गान रे ,
िजससे खुल जाएँ अलस पलक।
नस – नस मे जीिन झंकृत हो,
हो अंग – अंग मे जोश झलक।
ये - िंधन ििरिंधन
टू टे – फूटे पासाद गगनिुमिी
हम िमलकर हषष मना डाले,
हूके उर की िमट जायँ सभी।
1
हमे िनरं तर िूस – िूस कर,
झूम – झूम कर कोष िढाए।
2
हम दीिाने आज जोश की—
मिदरा पी उनमत हुए।
सि मे हम उललास भरे गे,
जिाला से संतप हुए।
3
िैभि के अिमट िरण-ििह / अटल ििहारी
िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
ििजय का पिष !
जीिन संगाम की काली घिडयो मे
किणक पराजय के छोटे -छोट कण
अतीत के गौरि की सििणम
ष गाथाओं के
पुणय समरण मात से पकािशत होकर
ििजयोनमुख भििषय का
पथ पशसत करते है ।
सिरता की मँझधार मे
अपरािजत पौरष की संपूणष
उमंगो के साथ
जीिन की उताल तरं गो से
हँ स-हँ स कर कीडा करने िाले
नैराशय के भीषण भँिर को
कौतुक के साथ आिलंगन
आननद दे ता है ।
4
पित
ष पाय लहिरयाँ
उसे
भयभीत नहीं कर सकतीं
उसे ििनता कया है ?
कुछ कण पूिष ही तो
िह सिेचछा से
कूल-कछार छोडकर आया
उसे भय कया है ?
कुछ कण पशात ् ही तो
िह संघषष की सिरता
पार कर
िैभि के अिमट िरण-ििह
अंिकत करे गा।
हम अपना मसतक
आतमगौरि के साथ
तिनक ऊँिा उठाकर दे खे
ििश के गगन मंडल पर
हमारी किलत कीितष के
असंखय दीपक जल रहे है ।
5
हमारी ििशिििदत ििजयो का इितहास
अधमष पर धमष की जयगाथाओं से िना है ।
हमारे राष जीिन की कहानी
ििशुद राषीयता की कहानी है ।
6
न दै नयं न पलायनम ्. / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
कतवषय के पुनीत पथ को
हमने सिेद से सींिा है ,
कभी-कभी अपने अशु और—
पाणो का अधयष भी िदया है ।
आज,
जि िक राष-जीिन की
समसत िनिधयाँ,
दाँि पर लगी है ,
और,
एक घनीभूत अँधेरा—
हमारे जीिन के
सारे आलोक को
िनगल लेना िाहता है ;
7
आगनेय परीका की
इस घडी मे—
आइए, अजुन
ष की तरह
उदोष करे :
‘‘न दै नयं न पलायनम।्’’
8
िहरोिशमा की पीडा / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
िकसी रात को
मेरी नींद आिानक उिट जाती है
आंख खुल जाती है
मै सोिने लगता हूँ िक
िजन िैजािनको ने अणु असो का
आििषकार िकया था
िे िहरोिशमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समािार सुनकर
रात को कैसे सोये होगे?
कया उनहे एक कण के िलये सही
ये अनुभूित नहीं हुई िक
उनके हाथो जो कुछ हुआ
अचछा नहीं हुआ!
9
सितंतता िदिस की पुकार / अटल ििहारी
िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
िजनकी लाशो पर पग धर कर
आजादी भारत मे आई।
िे अि तक है खानािदोश
गम की काली िदली छाई।।
कलकते के फुटपाथो पर
जो आँधी-पानी सहते है ।
उनसे पूछो, पनदह अगसत के
िारे मे कया कहते है ।।
10
भूखो को गोली नंगो को
हिथयार िपनहाये जाते है ।
सूखे कणठो से जेहादी
नारे लगिाए जाते है ।।
11
दो अनुभूितयाँ / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
िेनकाि िेहरे है ,
दाग िडे गहरे है
टू टता ितिलसम आज सि से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नजर
ििखरा शीशे सा शहर
दस
ू री अनुभूित : गीत नया गाता हूँ
12
पािी मे अरिणम की रे ख दे ख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ
13
ऊँिाई / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
ऐसी ऊँिाई,
िजसका परस
पानी को पतथर कर दे ,
ऐसी ऊँिाई
िजसका दरस हीन भाि भर दे ,
अिभननदन की अिधकारी है ,
आरोिहयो के िलये आमंतण है ,
उस पर झंडे गाडे जा सकते है ,
14
सचिाई यह है िक
केिल ऊँिाई ही काफी नहीं होती,
सिसे अलग-थलग,
पिरिेश से पथ
ृ क,
अपनो से कटा-िंटा,
शूनय मे अकेला खडा होना,
पहाड की महानता नहीं,
मजिूरी है ।
ऊँिाई और गहराई मे
आकाश-पाताल की दरूी है ।
जो िजतना ऊँिा,
उतना एकाकी होता है ,
हर भार को सियं ढोता है ,
िेहरे पर मुसकाने ििपका,
मन ही मन रोता है ।
जररी यह है िक
ऊँिाई के साथ ििसतार भी हो,
िजससे मनुषय,
ठू ं ट सा खडा न रहे ,
औरो से घुले-िमले,
िकसी को साथ ले,
िकसी के संग िले।
भीड मे खो जाना,
यादो मे डू ि जाना,
सियं को भूल जाना,
अिसतति को अथष,
जीिन को सुगंध दे ता है ।
15
धरती को िौनो की नहीं,
ऊँिे कद के इनसानो की जररत है ।
इतने ऊँिे िक आसमान छू ले,
नये नकतो मे पितभा की िीज िो ले,
मेरे पभु!
मुझे इतनी ऊँिाई कभी मत दे ना,
गैरो को गले न लगा सकँू,
इतनी रखाई कभी मत दे ना।
16
झुक नहीं सकते / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
17
अपने ही मन से कुछ िोले / अटल ििहारी
िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
पथ
ृ िी लाखो िषष पुरानी
जीिन एक अननत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यदिप सौ शरदो की िाणी
इतना काफी है अंितम दसतक पर, खुद दरिाजा खोले!
18
आओ िफर से िदया जलाएँ / अटल ििहारी
िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
19
एक िरस िीत गया / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
सीकिो मे िसमटा जग
िकंतु ििकल पाण ििहग
धरती से अमिर तक
गूँज मुिि गीत गया
एक िरस िीत गया
पथ िनहारते नयन
िगनते िदन पल िछन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक िरस िीत गया
20
मै न िप
ु हूँ न गाता हूँ / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
सियं को दस
ू रो की दिष से
मै दे ख पाता हूं
न मै िुप हूँ न गाता हूँ
ििखरे नीड,
ििहँ से िीड,
आँसू है न मुसकाने,
िहमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मै िुप हूँ न गाता हूँ
21
मौत से ठन गई / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
ठन गई!
मौत से ठन गई!
मै जी भर िजया, मै मन से मरँ,
लौटकर आऊँगा, कूि से कयो डरँ?
22
आज झकझोरता तेज तूफान है ,
नाि भँिरो की िाहो मे मेहमान है ।
मौत से ठन गई।
23
जीिन की ढलने लगी साँझ / अटल ििहारी
िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
िदले है अथष
शबद हुए वयथष
शािनत ििना खुिशयाँ है िाँझ |
सपनो मे मीत
ििखरा संगीत
िठठक रहे पाँि और िझझक रही झाँझ |
जीिन की ढलने लगी साँझ |
24
पुनः िमकेगा िदनकर / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
25
दध
ू मे दरार पड गई / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
26
कौरि कौन, कौन पाणडि / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
कौरि कौन
कौन पाणडि,
टे ढा सिाल है |
दोनो ओर शकुिन
का फैला
कूटजाल है |
धमरषाज ने छोडी नहीं
जुए की लत है |
हर पंिायत मे
पांिाली
अपमािनत है |
ििना कृ षण के
आज
महाभारत होना है ,
कोई राजा िने,
रं क को तो रोना है |
27
हरी हरी दि
ू पर / अटल ििहारी िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
हरी हकी दि
ू पर
ओस की िूँदे
अभी थी,
अभी नहीं है |
ऐसी खुिशयाँ
जो हमेशा हमारा साथ दे
कभी नहीं थी,
कहीँ नहीं है |
ककाँयर की कोख से
फूटा िाल सूयष,
जि पूरि की गोद मे
पाँि फैलाने लगा,
तो मेरी िगीिी का
पता-पता जगमगाने लगा,
मै उगते सूयष को नमसकार करँ
या उसके ताप से भाप िनी,
ओस की िुँदो को ढु ँ ढुँ ?
सूयष एक सतय है
िजसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सचिाइ है
यह िात अलग है िक ओस किणक है
कयो न मै कण कण को िजऊँ ?
कण-कण मे ििखरे सौनदयष को िपऊँ ?
28
सूयष तो िफर भी उगेगा,
धूप तो िफर भी िखलेगी,
लेिकन मेरी िगीिी की
हरी-हरी दि
ू पर,
ओस की िूँद
हर मौसम मे नहीँ िमलेगी |
29
कदम िमला कर िलना होगा / अटल ििहारी
िाजपेयी
रिनाकार : अट ल ििहारी िाजप ेय ी
30
सममुख फैला अगर धयेय पथ,
पगित ििरं तन कैसा इित अि,
सुिसमत हिषत
ष कैसा शम शथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सि कुछ दे कर कुछ न मांगते,
पािस िनकर ढलना होगा।
कदम िमलाकर िलना होगा।
31